राहों की बेड़ियाँ
खोल के चल दिये हैं
मज़दूर
अपने जिस्म को
अपने कांधे पर रखकर
ख़ुद अपने आपसे
ये बोल के चल दिये हैं
या तो वहशत पहुँचेगी
अपने क़दमों पर चलके
गांव हमारे
या फिर बेबसी हमारी
देश की मिट्टी में मिल जायेगी
आने वाली नस्लों के लिये
तारीख़ बन जायेगी॥