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तारे / श्रीनाथ सिंह
Kavita Kosh से
कैसे चमक रहे हैं तारे,
आसमान तो लख अम्मा रे।
मानो हों ऑंखें तेरी ही,
लखती हों सूरत मेरी ही।
अगर कहीं ये शोर मचावें।
तो न रात हम सोने पावें।
हैं चुपचाप काम निज करते,
लेकिन नहीं किसी से डरते।
पर जब लड़के पढ़ने जाते
बहुत बहुत वे शोर मचाते।
हार मास्टर भी जाता है,
हल्ला पर न दबा पाता है।
बिना मास्टर और बिना डर
रहें शांति से सुन्दर तारे।
शिशु की सुन ये बातें भोली
हंस करके माता यों बोली।
जो लड़के यह समझें लल्ला
तो न मदरसे में हो हल्ला।