भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तारों ने आवाज़ देकर कहा / प्रभात त्रिपाठी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रात तारों ने आवाज़ देकर कहा,
तुम ज़रा देख जाओ हमारा शहर
कैसे सुनसान में घूमते-घूमते
हमने अब तक बिताई दहकती उमर
 
मैंने कोशिश बहुत की कि सपने में ही
जाके देखूँ कभी मिलके आऊँ सही
देखिए इश्क की बेरहम बेबसी,
रास्ता रोकने आ गया मेरा घर
 
ना तो वो दिल रहा, ना वो ताक़त रही,
जाके देखूँ सितारों की दुनिया कहीं
अब कोई अपने हाथों उठा ले मुझे,
आख़िरी बात इत्ती-सी है मुख़्तसर