तारों भरे आँचल को परसों तक नहीं जलाना चाहिए / पराग पावन
हताशाओं और नाउम्मीदी का महासागर हमेशा डरावना होता है
फिर भी हौसले का लंगर सफ़र पर निकल ही जाता है
पराजय की शाम तानाशाहों की हँसी जितनी घृणित और क़ातिल होती है
पर जज्बातों के पंछी अपना मंगलगीत कभी नहीं भूलते
यह भी समझ ही लेना चाहिए कि
जब तक हमारा घर शून्य नहीं है
या जब तक हम निर्वात् के नागरिक नहीं हैं
तब तक ‘व्यक्तिगत’ हिन्दी शब्दकोश का अतिरिक्त शब्द है
कहा नहीं जा सकता कि प्रेमिका की बेवफ़ाई का दुख
प्रधानमन्त्री के नैतिक पतन का दुख
और पटिदार से पुश्तैनी पेड़ के विवाद का दुख
तत्वतः किस तरह अलग हैं
दुख की यही आदत है
वह आने के मामूली अवसर को भी गँवाना नहीं जानता
दुख के आने के हज़ार तर्क हैं
और जीवन उन तर्कों में सर्वश्रेष्ठ है
पर जैसा कि मैंने ऊपर कहा
मुश्किलों के भेड़ियों की गुर्राहट
इनसान के पसीने तक पहुँचने से पहले ही
थककर सो जाती है
जिस दर पर दुनिया वाले रास्तों को दफ़ना देते हैं
वहीं एक रास्ता पैदा होता है और इनसान की अँगुली पकड़कर श्मशान से बाहर
ले जाता है
कहने वाले कहते हैं चाँद पर महज मिट्टी है और सभी तारों पर कमोबेश ऐसा ही है
पर कुछ लोग अब भी तारों से एक आँचल बना रहे हैं
वे लोग उस तारों भरे आँचल को परसों तक नहीं जलाएँगे ।