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तार्किकों को छोड़ उन्मत्तों से अभ्यन्तर मिला / शिव ओम अम्बर

तार्किकों को छोड़ उन्मत्तों से अभ्यन्तर मिला,
तू सरलता में तरलता में न आडम्बर मिला।

हो कठिन कितना मगर जग में असंभव कुछ नहीं,
मरुथली उत्ताप से आश्वस्तिकर पुष्कर मिला।

है विषम कलिकाल माना, तू इसी में शक्ति भर,
निष्कलुष कृतयुग मिला त्रेता मिला द्वापर मिला।

शिष्ट सम्वर्दधन अशिष्टों का दमन युगपत् चले,
वैष्णवी पीताम्बरों में शैव व्याघ्राम्बर मिला।

विकृतियों से विभ्रमों से व्याप्त इस वातास में,
तू प्रणय के कुंजवन की बाँसुरी का स्वर मिला।