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तार उनका हिचकियों ने / सरोज मिश्र

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तार उनका हिचकियों ने जबसे है पढ़कर सुनाया।
कह रहा मन आज शायद फ़ोन की घण्टी बजेगी।
डोर पर उम्मीद की ये,
कौन बैठा ख़त सम्हाले।
मैं बढ़ाऊँ हाँथ आगे,
वो निठुर आंखे घुमा ले।
बढ़ रही बेचैनियाँ तो
उठ रहे ढेरो अंदेसे।
क्या क्षमा के शब्द होंगे,
या मिलन कहते संदेसे।

लो अचानक आँख फड़की दाहिनी ये तो शकुन है।
नाम की मेरे ही मेहँदी उस हथेली अब रचेगी।
कह रहा मन आज शायद, फ़ोन की घण्टी बजेगी।

लाख बदलें ढंग चाहे,
रूप के बदले नजारे
दो कबूतर पढ़ ही लेते
प्रेम के अद्भुत इशारे।
ब्लैंक थी डीपी जो कल तक
खास उस पर अब दिखा है।
लाल रंग का दिल बना है
और उस पर लव लिखा है।
हैं सभी सिग्नल सुरक्षित और अपडेट ऐप सारे
रात भर अब तो हमारी वीडियो कॉलिंग चलेगी
कह रहा मन आज शायद फ़ोन की घण्टी बजेगी।