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तार के खंभे / भवानीप्रसाद मिश्र
Kavita Kosh से
एक सीध में दूर-दूर तक गड़े हुए ये खंभे
किसी झाड़ से थोड़े नीचे , किसी झाड़ से लम्बे ।
कल ऐसे चुपचाप खड़े थे जैसे बोल न जानें
किन्तु सबेरे आज बताया मुझको मेरी माँ ने -
इन्हें बोलने की तमीज है , सो भी इतना ज्यादा
नहीं मानती इनकी बोली पास-दूर की बाधा !
अभी शाम को इन्हीं तार के खंभों ने बतलाया
कल मामीजी की गोदी में नन्हा मुन्ना आया ।
और रात को उठा , हुआ तब मुझको बड़ा अचंभा -
सिर्फ बोलता नहीं , गीत भी गाता है यह खंभा !