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तालमेल / रंजना जायसवाल
Kavita Kosh से
खत्म होती जा रही है
समय से पूर्व स्त्री
तालमेल बिठाने में
दुनिया बदल गयी है
दो दीवारों में
धीरे-धीरे आगे बढ़ती
गली को संकरा करती
जहाँ खड़ी है वह।