भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ता-ता थैया / राजा चौरसिया
Kavita Kosh से
एक चिरैया
है गौरेया,
खूब फुदकती
और चहकती,
उड़ती दिनभर
मगर न थकती,
गाए, नाचे
ता ता थैया!
कभी द्वार पर
कभी तार पर,
मन को रहती
नहीं हार कर,
जाती पनघट
ताल तलैया!
बड़ी सयानी
श्रम की रानी,
कभी न माँगे
दाना-पानी,
इसे निहारे
छोटा भैया!
जोड़े तिनका
अपने मन का,
लाड-प्यार
पाती जन-जन का,
उड़े फुर्र से
बैठ मड़ैया!