एक शहर रो रहा है 
सुबह की आस में 
जरूरी तो नहीं 
कि 
हर बार सूरज का निकलना ही साबित करे 
मुर्गे ने बांग दे दी है 
यहाँ नग्न हैं परछाइयों के रेखाचित्र 
समय एक अंधी लाश पर सवार
ढो रहा है वृतचित्र 
नहीं धोये जाते अब मलमल के कुरते सम्हालियत से 
साबुन का घिसा जाना भर जरूरी है 
बेतरतीबी बेअदबी ने जमाया है जबसे सिंहासन 
इंसानियत की साँसें शिव के त्रिशूल पर अटकी 
अंतिम साँस ले रही है 
और कोई अघोरी गा रहा है राग मल्हार 
इश्क और जूनून के किस्से तब्दील हो चुके हैं 
स्वार्थ की भट्टी में 
आदर्शवाद राष्ट्रवाद जुमला भर है 
और स्त्री सबसे सुलभ साधन 
ये समय का सबसे स्वर्णिम युग है 
क्योंकि 
अंधेरों का साम्राज्य चहुँ ओर से सुरक्षित है 
फिर सुबह की फ़िक्र कौन करे 
आओ कि
ताल ठोंक मनाएं उत्सव एक शहर के रोने पर 
ता धिन धिन धा