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तिकसा चढ़ौनी / बैगा

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बैगा लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

तर नानी नानी नानरी नानी, तरी नानी नाना रे नान।
तरी नानी नानी नानरी, तरी नानी नाना रे नान।
दैया दैया अंगरिया-अंगरी चढ़ जारे,
तिकसा दबरीना सिल चढ़ही जाय। दाई 2
घुटवाना-घुटवा चढ़ जा रे।
तिकसा जंगहियाना सिल चढ़ही जाय। दाई 2
कहि ना –छतिया चढ़ जा रे,
तिकसा माथे मा सिल चढ़ही जाय। दाई 2
छतिया ना – छतिया चढ़ जा रे,
तिकसा माथे मा सिल चढ़ही जाय। दाई 2
कहाँ है तिकसा टोरे जनामन,
कहाँ टोरे थान दाई। दाई 2
कोयल काछोरे टोरे जनामन,
सिल समदूर है टोरे थान दाई। दाई 2

शब्दार्थ –सिलचढ़ही=अच्छी तरह से लग जा, घुटवाना= घुटने, कनिहा=कमर, जंगहियाना=जाँघों पर, जनामन=जन्म, थान=स्थान, कोयली कछार=बहुत दूर।

तिकसा चढ़ौनी दूल्हा-दुल्हन को तिकसा लगाने का गीत है। इस गीत में सहेली सुआसिन महिलाएँ सामूहिक रूप से गीत गाते हुए अंगों के नाम ले-लेकर उन अंगों आर हल्दी लगाती हैं।

ऐ तिकसा! सबसे पहले तू दुल्हन के पैर की ऊंगलियों पर चढ़ जा। फिर पैर पर, घुटनों पर, फिर जाँघों पर, फिर कमर के हिस्सों पर, फिर छाती पर, इसके पश्चात माथे पर चढ़ जा। इस प्रकार एक-एक अंग पर तिकसा सुवासिनों द्वारा लगाया जा रहा है।

एक सुवासिन पूछती है – ऐ हल्दी! तुम्हारा जन्म कहाँ हुआ है। तुम्हारा जन्म कहाँ है? दूसरी सुवासिन गाती है – अरी सहेली! हल्दी का जन्म कोयली कछार में हुआ है, उसका जन्म स्थान समुद्र के पार दूर देश में है।