भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तिक तिक धा / रणजीत

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तिक् तिक् धा
जन गंगा
हो शत धा
गा गा गा
गीत
(निश्चित तेरी जीत!)
नव युग का
तिड़ तिड़ धम
बहुत सहे ग़म
साध कर दम
मिला कर कदम
ले कार वाँ
बढ़ ता जा
कर घो षणा
जोंक-व्यवस्था जोंक-व्यवस्था जोंक-व्यवस्था जा
लोक-व्यवस्था लोक-व्यवस्था लोक-व्यवस्था आ
तड़ तड़ तड़, तड़-तड़ ता
लड़ लड़ लड़, लड़ता जा
युग-सूरज को जल्द उगा।