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तितलियाँ हैं यादें / अर्चना भैंसारे

फूल-सी खिल जाती देह
तो फुदकने लगती यादें
बिछ जाता चेहरे पर बसन्त
भर जाती मोहक गंध
छलक उठता राग-रंग पोर-पोर से
तितलियाँ ही तो होती हैं यादें
प्रकृति के हज़ारों रूप
अपने पंखों में समेट कर
घूमती मन के ओर-छोर
हथेली पर उतरती धूप-सी भर जाती
स्‍मृति की देह में

संचित करती जीवन का आनंद अपने भीतर
सुखद पलों का वंशानुकरण करतीं
दौडती फूल-फूल
यादें फुदकती हैं, महकती हैं, घूमती हैं, दौड़ती हैं
तितलियां हैं यादें