भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तितलियाँ / कृष्ण कुमार यादव

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आज मैंने उसको देखा
वह दौड़ रही थी
तितलियों के पीछे

जूही, गेंदा, गुलाब
और न जाने
कितने-कितने फूलों के पास
तितलियाँ भी छेड़ती थीं उसे
हाथ में आकर भी छूट जातीं

पर एक तितली को
शायद अच्छा न लगा
वह उसके हाथ आ ही गई
उसकी ख़ुशी का ठिकाना न रहा
उसे लेकर वह वहीं
फूलों के बीच लेट गई
अपनी अल्हड़ धड़कनों पर
काबू पाने के लिए
तभी हवा का तेज़ झोंका आया
और उसके सीने पर रखे
दुपट्टे को उड़ा ले गया

ऐसा लगा, मानों तितलियों का झुंड
फूलों का रस पीकर उड़ा जा रहा हो ।