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तितलियाँ / स्वप्निल श्रीवास्तव
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मैंने ज़िन्दगी में बहुत सी तितलियाँ
देखी हैं
पीले रंग की तितली बसन्त के दिनों
में दिखाई देती थी
वह स्वभाव से खिलन्दड़ होती थी
वह गुलाब के फूलों के आसपास
मण्डराती थी
कई रंगों वाली तितली जाड़े के मौसम में
आती थी
गेंदें के फूलों के पास उसका ठिकाना था
हरे रंग की तितली के लिए बारिश
का मौसम नियत था
भीगना और भिगोना उसका शौक था
सफ़ेद रंग की तितली शान्त रहती थी
वह गुमसुम दिखती थी
लोग उसे साध्वी कहते थे
इन तितिलियों के बीच साँवले रंग की एक
ढीठ तितली थी
जो उसके पीछे भागता था
वह ज़िन्दगी भर भागता रहता था
तितलियाँ चैन से नहीं रहने
देती थीं
हमेशा हम से दूर उड़ती
रहती थीं