भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तिनका-तिनका / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तिनका ­तिनका लाकर चिड़िया

रचती है आवास नया ।

इसी तरह से रच जाता है

सर्जन का आकाश नया ।

मानव और दानव में यूँ तो

भेद नजर नहीं आएगा ।

एक पोंछता बहते आँसू

जीभर एक रुलाएगा ।

रचने से ही आ पाता है

जीवन में विश्वास नया ।

कुछ तो इस धरती पर केवल

खून बहाने आते हैं ।

आग बिछाते हैं राहों पर

फिर खुद भी जल जाते हैं ।

जो होते खुद मिटने वाले

वे रचते इतिहास नया ।

मंत्र नाश का पढ़ा करें कुछ

द्वार -द्वार पर जा करके ।

फूल खिलाने वाले रहते

घर­ घर फूल खिला करके ।

रहता सदा इन्हीं के दम पर

सुरभि सरोवर पास नया ।