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तिमिर में वे पदचिह्न मिले! / महादेवी वर्मा

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तिमिर में वे पदचिह्न मिले!

युग-युग का पंथी आकुल मन,
बाँध रहा पथ के रजकण चुन;
श्वासों में रूँधे दुख के पल
बन बन दीप चले!

अलसित तन में, विद्युत-सी भर,
वर बनते मेरे श्रम-सीकर;
एक एक आँसू में शत शत
शतदल-स्वप्न खिले!

सजनि प्रिय के पदचिह्न मिले!