तिरी क़ातिल अदा ने मार डाला
क़ज़ा बन कर हया ने मार डाला।
हमेशा ही रही है ना-मुआफ़िक़
ज़माने की हवा ने मार डाला।
ये क़बल-अज़-वक़्त वावेला कहां तक
ग़मे-रोज़े-जज़ा ने मार डाला।
खजिल हूँ हुक्मे अर्ज़े-मुद्दआ पर
दिल-बे-मुद्दआ ने मार डाला।
बपा तूफ़ान है वहशत का दिल में
बबूलों की हवा ने मार डाला।
'वफ़ा' ग़ुर्बत में रोये कौन हम को
कहां ला कर क़ज़ा ने मार डाला।