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तिरी नज़र से ज़माने बदलते रहते हैं / सैफ़ुद्दीन सैफ़

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तिरी नज़र से ज़माने बदलते रहते हैं
ये लोग तेरे बहाने बदलते रहते हैं

फ़ज़ा-ए-कुंज-ए-चमन में हमें तलाश न कर
मुसाफ़िरों के ठिकाने बदलते रहते हैं

नफ़स नफ़स मुतग़य्यर है दास्तान-ए-हयात
क़दम क़दम पे फ़साने बदलते रहते हैं

कभी जिगर पे कभी दिल पे चोट पड़ती है
तिरी नज़र के निशाने बदलते रहते हैं

लगी है ‘सैफ़’ नज़र इंक़िलाब-ए-दौराँ पर
सुना तो है कि ज़माने बदलते रहते हैं