पहले वर्ष का छात्र
जैसे लिखता है, वैसे ही
सहज भँगिमा में आवेगों को लिखो ।
बताओ
कि आज भी तेज़ धूप,
वर्षा याद आती है...
अब भी क्या
क्षत-विक्षत होते हो
प्रेम के दंश से ।
मूल बाँगला भाषा से अनुवाद : रामशंकर द्विवेदी
पहले वर्ष का छात्र
जैसे लिखता है, वैसे ही
सहज भँगिमा में आवेगों को लिखो ।
बताओ
कि आज भी तेज़ धूप,
वर्षा याद आती है...
अब भी क्या
क्षत-विक्षत होते हो
प्रेम के दंश से ।
मूल बाँगला भाषा से अनुवाद : रामशंकर द्विवेदी