भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तिरे आने का धोका सा रहा है / नासिर काज़मी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तिरे आने का धोका सा रहा है
दिया सा रात भर जलता रहा है

अजब है रात से आँखों का आलम
ये दरिया रात भर चढ़ता रहा है

सुना है रात भर बरसा है बादल
मगर वो शहर जो प्यासा रहा है

वो कोई दोस्त था अच्छे दिनों का
जो पिछली रात से याद आ रहा है

किसे ढूँढोगे इन गलियों में 'नासिर'
चलो अब घर चलें दिन जा रहा है।