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तिरे ख़याल का शोला थमा थमा सा था / मज़हर इमाम
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तिरे ख़याल का शोला थमा थमा सा था
तमाम शहर-ए-तमन्ना बुझा बुझा सा था
न जाने मौसम-ए-तलवार किस तरह गुज़रा
मिरे लहू का शजर तो झुका झुका सा था
हमें भी नींद ने थपकी दी सो गए तुम भी
तमाम हादसा-ए-शब सुना सुना सा था
बला-ए-शाम के साए थे और वादी-ए-दिल
अगरचे सुब्ह का चेहरा धुला धुला सा था
चराग़ मंज़िल-ए-दिल पर जला के क्या करते
वफ़ा का क़ाफ़िला कब से रूका सा था
वो नाम जिस के लिए ज़िंदगी गँवाई गई
न जाने क्या था मगर कुछ भला भला सा था