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तिलकी परन तिलन सें हलकी / ईसुरी
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बुन्देली लोकगीत ♦ रचनाकार: ईसुरी
तिलकी परन तिलन सें हलकी,
बाँय गाल पै झलकी।
मानौ चुई चाँद के ऊपर।
बुंदकी जमना जल की।
मानों फूल गुलाब के ऊपर,
उड़ बैठन भई अलकी।
के गोविन्द गुराई दै कैं।
बैठ गये कर छलकी।
जी में लगी ईसुरी जी के,
दिल के दाब अतल की।