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तीजा लेगे ले आवत हे / ध्रुव कुमार वर्मा

Kavita Kosh से
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लगगे भादो करिया बादर
उत्ती उहर ले छावत हे।
अइसे लागत हे मोर भइय्या
तीजा लेगे ले आवत हे।

मइके उहर ले हवा आवय
बादर, उठय पानी लानय।
नदियां बैरी छेकत होही,
का भाई के मया ल जानय।
रमला, कमला मंगतिन सबो
आगे होही अपन मइके।
मोर भइय्या ला पूछत होही
मोला कोन दिन आही कइके।

तभ्भो ले का होगे ओला
मोर सुरता नई आवत हे॥1॥

लकर लकर सब रद्दा रेंगय
अपन मयारू भइय्या संग।
एक्को निक नई लागय मोला
खेत निंदाई संय्या संग।
ठट्ठा मढ़ा मढ़ा के करथे
ओहा मांेला अब्बड़ तंग।
तोर भइय्या हा भुलागे होही
रद्दा बाट मां ककरो संग।

तोर सुरता ल काबर करही
कहि कहि के उसटावत हे॥2॥

कस रे बगुला तोरे असन,
पहिरे कोनो धोती कुरता।
आवत हे का एही कोती,
करके बहिनी मन के सुरता।
हाथ मां राखी बांधे होही,
चुंदी झुलुप उतारे।
जल्दी रेंगे बर कहि देबे,
भइय्या मोर सुवा रे।

दीदी कइथस, निकल के देखव
भइय्या के भोरहा लागत हे॥3॥

कोनो सास ससुर के झंझट,
कोनो ननंद के चारी ला।
सकला के गोठियावत होही
सुख दुख ठट्ठा गारी ला
तरिया तीर के आमा पेड़ मां
झुलना बांधे, झूलत होही
अपन-अपन के बात बताके
खोखमा फूल अस फूलत होही

रतिहा के उसनिंदा असन
बेरा हा जमहावत हे॥4॥