भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तीतर रै तूं बामै दाहने बोल / हरियाणवी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तीतर रै तूं बामै दाहने बोल, चढ़ते जमाई का सूण मणाइये जी मैं का राज
कोयल हे तूं बागां में जा बोल, चढ़ते जमाई नै सबद सुणाइये जी मैं का राज
सूरज हे तूं बादल में बड़जा, चढ़ते जमाई नै लागै घामड़ा जी मैं का राज
बादल रे तू झीणा बरस, चढ़ती लाडो की भीजै नौरंग चूंदड़ी जी मैं का राज
आंधी हे तूं झीणी झीणी चाल, चढ़ते जमाई का गरद भरै कपड़े जी मैं का राज
टीबी हे तूं ऊंची नीची हो, चढ़ते जमाई की दीखै पंचरंग पागड़ी जी मैं का राज