भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तीन ताँका / इशिकावा ताकुबोकु / उज्ज्वल भट्टाचार्य
Kavita Kosh से
1.
काम किए जाता हूँ
सिर्फ़ काम, तब भी ज़िन्दगी आसान नहीं
अपनी हथेलियाँ देखता रहता हूँ
2.
जिन किताबों को चाव से पढ़ता था
काफ़ी अरसा पहले
अब उनका दस्तूर नहीं रह गया
3.
मैं लिखना चाहता था, क्या पता कुछ भी
मैंने क़लम उठाई :
सुबह की घड़ी में ताज़े-ताज़े फूल