तीन दिन में आपको दुनिया दिखाने आए हैं / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'
तीन दिन में आपको दुनिया दिखाने आए हैं
कब, कहाँ, कैसे है जाना, ये बताने आए हैं
चौंतीस मुल्कों और भारत के यहाँ छब्बिस प्रदेश
सात सौ इसमें प्रदर्शक भाग लेने आए हैं
लेके कारें, हर तरह की, आए हैं छोटी बड़ी
बैक पुश वाली बसें, लेकर घुमाने आए हैं
तीन से हैं सात तक, कुछ हैं सितारों के बिना
हैं बजट होटल कहाँ पर, ये बताने आए हैं
चार दिन और तीन रातों का है पैकेज टूर कम
क्या हनी क्या मून होगा, ये बढ़ाने आए हैं
लौटकर आ जाएगा घाटी में फिर चैनो-अमन
देवियों, देवों को रूठे, हम मनाने आए हैं
दूरदर्शन या सिनेमा ना किसी तस्वीर में
जंगली जीवों को जंगल में दिखाने आए हैं
हो के हिन्दू , ना लगाईं डुबकियां ना जल पिया
इसलिए, फिर ज्ञान की गंगा बहाने आए हैं
करके आने, जाने, रहने, खाने का सब इंतजाम
सैलानियों, यायावरों को हम बुलाने आए हैं
देख लो दुनिया है जितनी जब तलक है दम में दम
कल की है किसको ख़बर हम ये बताने आए हैं
तितलियों के साथ उड़ते हैं ख़याल उनको 'रक़ीब'
गूंथकर अल्फाज़ की माला बनाने आए हैं