वे तीनों बन्दर ही थे
लेकिन गाँधीजी के नहीं
पहला बोलता था
लेकिन अपनी भाषा नहीं
दूसरा सुनता था
लेकिन लोकतंत्र और जनता की नहीं
तीसरा देखता था
लेकिन संविधान और न्याय को नहीं
तीनों बन्दर ही थे !
वे तीनों बन्दर ही थे
लेकिन गाँधीजी के नहीं
पहला बोलता था
लेकिन अपनी भाषा नहीं
दूसरा सुनता था
लेकिन लोकतंत्र और जनता की नहीं
तीसरा देखता था
लेकिन संविधान और न्याय को नहीं
तीनों बन्दर ही थे !