भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तीन बन्दर / मदन कश्यप

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वे तीनों बन्दर ही थे
लेकिन गाँधीजी के नहीं

पहला बोलता था
लेकिन अपनी भाषा नहीं

दूसरा सुनता था
लेकिन लोकतंत्र और जनता की नहीं

तीसरा देखता था
लेकिन संविधान और न्याय को नहीं

तीनों बन्दर ही थे !