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तीन बाँसक विषाह छाहरि / मन्त्रेश्वर झा

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हँ तैयो लगैए जे
बँसविट्टी हमरे छी।
हमर तीनू बेसाहल बाँस कहिया ने
ठुट्ठ भऽ गेल
ठुट्ठ तीनू बाँस कहिया सँ ने,
हमरा गड़ैत रहल, गरड़ैत रहल हमरा
पिताइत रहलहुँ हम
छटपटाइत रहलहुँ
सुखाइत, सड़ैत, गन्हाइत रहल बाँस
टूटि के लाठी होइत रहल
पेना होइत रहल
तैयो लगैए जे पूरा बँसविट्टी
हमरे छी
आ हमही छी बँसविट्टी
छुटैत नहि अछि एत्ते सालक
रकटल अभ्यास
हम चाहैत छी जे हम
बाँस नहि रही
पात भऽ जाइ
निर्द्वन्द्व फरफराइ
मुदा लगैए जे बँसविट्टीक
बिना हम नहि रहब
तीनू टुटल-सड़ल बाँसक बिना
हम छीहे नहि
रहबे नहि करब
कखनो के लगैए जे
अनर्गल प्रलाप कऽ रहल छी
बिना सरगमक आलाप कऽ रहल छी
किएक ने बहरा जाइत छी
तीन बाँसक बँसविट्टी सँ
किएक ने बना लैत छी
ओही पेनाक लुकाठी
मुदा तथाकथित घर मे आगि
लगेबा सँ
अहूँ तऽ रोकैत छी
अहूँ तऽ कहैत छी
जे जाहि घर मे बिताओल
एत्ते वर्ष
ओकरा किन्नहु ने जराउ
कदाचित अहाँ हमर पेना सँ
सुरक्षित बुझैत छी अपनाकें, भूतप्रेत सँ।
तेँ हम अपने अरजल भूत मे
मरैत रहैत छी
जरैत रहैत छी अपने
बँसबिट्टीक बिखाह छाहरि मे
तीनू बाँसक पेना के
कहियो के भाँजि लैत छी
आ नुकबैत
रहैत छी ओकरा
कहियो एहि जेबी
कहिओ ओहि जेबी।