भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तीन व्क्तव्य / सौरभ
Kavita Kosh से
‘’’एक’’’
मैं राम हूँ
मैं हूँ रहीम
यह हूँ ही हमें
सही राह दिखा सकता है।
‘’’दो’’’
सुहानी शाम
बच्चों का खेल
कोयल का गीत
गाड़ियों की आवाज
हवाओं का संगीत
और सन्नाटे का गीत
शाम में रंग भर रहा है।
तीन
बेशर्मों से शर्म की बात
लगती है कुछ अटपटी सी
हिंसकों से अहिंसा की बात
लगती कुछ अटपटी सी।