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तीरगी जाल है / रसूल हम्ज़ातव
Kavita Kosh से
तीरग़ी<ref>अन्धेरा</ref> जाल है और भाला है नूर
इक शिकारी है दिन, इक शिकारी है रात
जग समन्दर है जिसमें किनारे से दूर
मछलियों की तरह इबने-आदम की ज़ात
जग समन्दर है, साहल पे हैं माहीगीर<ref>मछुआरे</ref>
जाल थामे कोई, कोई भाला लिए
मेरी बारी कब आएगी क्या जानिए
दिन के भाले से मुझको करेंगे शिकार
रात के जाल में या करेंगे असीर<ref>क़ैदी</ref>
शब्दार्थ
<references/><ref></ref>