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तीर खाने के लिए दार पे जाने के लिए / कांतिमोहन 'सोज़'
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तीर खाने के लिए दार पे जाने के लिए।
हम हैं मौजूद तेरे नाज़ उठाने के लिए।।
इश्क़ से जंग-तलक जो भी किया ख़ूब किया
हमने कुछ भी न किया रस्म निभाने के लिए।
दिल का हर रेज़ा रहा लालो-गौहर<ref>लाल और मोती</ref> पर भारी
कुछ उठा लाए तेरी बज़्म सजाने के लिए।
मशगला होता घड़ी भर का तो हम रो लेते
उम्र दरकार थी एक अश्क बहाने के लिए।
उनकी नज़रों में तो एक ज़र्रा थे नाचीज़ थे हम
क्या हुआ जो हुए मक़बूल ज़माने के लिए।
एक-एक करके सब उशशाक़<ref>आशिक का बहुवचन</ref> ने दम तोड़ दिया
हम बचे रह गए अहवाल सुनाने के लिए।
सोज़ काँधे पे उठाए हुए तेशा<ref>कुदाल</ref> अब तक
नौकरी करता है कोहसार<ref>पहाड़</ref> गिराने के लिए।।
6-2-1986
शब्दार्थ
<references/>