भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तीर बेघत निकलिये गइल / जवाहर लाल 'बेकस'
Kavita Kosh से
तीर बेघत निकलिये गइल,
जान अखडे़रे चलिये गइल।
आग ले दोस्ती का भइल,
घर फतिंगन के जरिये गइल।
आदमी, आदमी न रहल,
लोग अतना बदलिये गइल।
पी के गिरला ले का फायदा,
जब कि गिर के सम्हलिये गइल।
एह दुनिया के कोरहाग में,
जे भी आइल ऊ चलिये गइल।
ओह गजल के बसल इयाद में,
उम्र बेकस के ढलिये गइल।