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तीव्र नीली कोलम सिम्फ़नी-6 / दिलीप चित्रे

घुटता हुआ लहर में
मैं आकारहीन हूँ
इस जागृति का
अब तक कोई छोर नहीं
झूलता हुआ चीज़ों से
लदा ऊपर तक, और फिर नीचे
डूबता हुआ आँखों में
कुण्ठाओं के शहर के फुटपाथ पार करता
लड़खड़ाता, थरथराता