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तीसरा विश्व युद्ध / सुरेश कुमार मिश्रा 'उरतृप्त'
Kavita Kosh से
बन गयी है दुनिया पौधा,
खिर रहे हैं फूल दर्द के।
हाय! क्या जमाना आ गया,
गिर रहे हैं लक्ष्य टूट के॥
इस पौधे के पत्ते हम हैं,
हमीं से है हरियाली इसकी।
हम जो पीले पड़ जायेंगे,
कुछ नहीं है पहचान इसकी॥
इस पौधे के डंठल-डंठल,
पत्ता और तना भी उठकर।
आज अपना अधिकार माँगे,
इस पौधे की हरियाली माँगे।
इस पौधे का पत्ता कोई,
और नहीं है जानो भाई।
कोई अमेरिका, कोई ब्रिटेन,
घमंड में हर कोई भाई॥
इस पौधे का पत्ता भाई,
दिखाना चाहता है अपनी शान।
किंतु शान के उजियारे में वह,
करता है अंधेरे का अभिमान॥
क्या होगा इस पौधे का
क्या होगा इस पर खिले फूलों का,
आ रही इन फूलों से
बदबू तीसरे विश्वयुद्ध की।