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तीस दिन बीती गेलै / कस्तूरी झा 'कोकिल'

तीस दिन बीती गेलै, आय ताँय नैं ऐली छेॅ।
लागै छै बौखाय केॅ रस्ते भूलैली छेॅ।
जी.डी. कालूज पीछू में,
आपनें तेॅ घोॅ र छै।
रात विचार कखनूँ आबोॅ,
तनियों नैं डोॅ र छै।
तोरा तेॅ देखले छौं, कथीलेल भरमैली छेॅ?
तीस दिन बीती गेलै, आयताँय नैं ऐली छेॅ।
रात भर जागी केॅ होयछै बिहान
तोरैह पर हरदम रहै छै धियान।
की करियै बोलेॅ नीं कोनों उपाय,
व्याकुले रहै छै हमरोॅ परान।
आबऽ नें जलदी सें कहाँ तोंय नुकैली छेॅ?
तीस दिन बीती गेलै, आयताँय नैं ऐली छेॅ।
लागै छै बौखी केॅ रस्ते भूलैलीछेॅ।

16 फरवरी, 2016
(फागुन कृष्ण द्वादशी, 11.15 बजे)