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तीस / आह्वान / परमेश्वरी सिंह 'अनपढ़'

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मल कर उस कठिन चरण से कोमल धरती का वक्ष स्थल
बन गया महा-लघु-लघु रज-कण

हिल-हिल मधुमय बातास सहज धीमें से
अलि के काले पंखो पर उड़-उड़ पड़ कर
जो बना दिया धूसर-तन

छा गया व्योम के ओर-छोर फैला समीर के बल से
कर दिया शून्य को महा सघन

धूसर जग, धूसर नीड़ पात, भर गया विश्व में अंधकार
बाली पंथ की चरण-धुली से

हो गया ज्ञों में परिवर्तन
छा गया शून्य के ओर-छोर
हो गया तभी से नील गगन