भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुझसे विनती करूँ लेखनी / कमलेश द्विवेदी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुझसे विनती करूँ लेखनी ऐसा गीत बना दे।
जिसके द्वारा जन-जन को तू मेरा मीत बना दे।
अक्षर-अक्षर की जननी तू
शब्द-शब्द हैं तेरे।
सारे वाक्य दिये हैं तूने
जो कहलाते मेरे।
करके कृपा सफलता मेरी आशातीत बना दे।
तुझसे विनती करूँ लेखनी ऐसा गीत बना दे।

तुलसी-सूर-कबीरा सबको
तूने धन्य किया है।
मैंने भी अब तेरे द्वारे
रक्खा एक दिया है।
मेरे मन के भावों को भी परम पुनीत बना दे।
तुझसे विनती करूँ लेखनी ऐसा गीत बना दे।

कभी न मेरा साहस टूटे
कभी न मैं घबराऊँ।
अपना बुरा चाहने वालों
का भी बुरा न चाहूँ।
अगर कभी मैं लगूँ हारने उसको जीत बना दे।
तुझसे विनती करूँ लेखनी ऐसा गीत बना दे।