भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुझहि चरन अरबिंद / रैदास

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

।।राग आसा।।
  
तुझहि चरन अरबिंद भँवर मनु।
पान करत पाइओ, पाइओ रामईआ धनु।। टेक।।
कहा भइओ जउ तनु भइओ छिनु छिनु। प्रेम जाइ तउ डरपै तेरो जनु।।१।।
संपति बिपति पटल माइआ धनु। ता महि भगत होत न तेरो जनु।।२।।
प्रेम की जेवरी बाधिओ तेरो जन। कहि रविदास छूटिबो कवन गुनै।।३।।