तुझे उदास किया खुद भी सोगवार हुए
हम आप अपनी मोहब्बत से शर्मसार हुए
बला की रौ थी नदीमाने-आबला-पा को
पलट के देखना चाहा कि खुद गुबार हुए
गिला उसी का किया जिससे तुझपे हर्फ़ आया
वरना यूँ तो सितम हम पे बेशुमार हुए
ये इन्तकाम भी लेना था ज़िन्दगी को अभी
जो लोग दुश्मने-जाँ थे, वो गम-गुसार हुए
हजार बार किया तर्के-दोस्ती का ख्याल
मगर फ़राज़ पशेमाँ हर एक बार हुए