तुझे तोड़ देगा, यही मौन तेरा / राजीव रंजन प्रसाद

कहाँ जा रहे हो, वहाँ कौन तेरा
तुझे तोड़ देगा, यही मौन तेरा..

बने हो खिलौना, रे मिटटी के माधो
नहीं कुछ तुम्हारा, न सावन न भादो
मगर आदमी आम जैसे चुसे हो
दिलों पर हैं पत्थर, बिलों मे घुसे हो..

साँसों की सोचो, नजरबंद होगी
जो मकड़ी बुनेगी, षटकोन घेरा..
कहाँ जा रहे हो, वहाँ कौन तेरा...

पक्का न कच्चा, भूखा है बच्चा
कल का है सपना, झूठा कि सच्चा
कहानी में नानी ने पूए पकाये
जो दादा ने देखे न नाना ने खाये..

चुल्लु में पानी, आँखों में सूरज
फूटे फफोलों में है नोन तेरा..
कहाँ जा रहे हो, वहाँ कौन तेरा...

घुटनों में चेहरा, आँखों में काँटे
हाँथों की रेखा में किसने ये बाँटे
जुगनू से पूछो अंधेरे की बातें
बिखरते सितारों से फैली हैं रातें..

अपने तने को तुम्हीं काटते हो
किसी घर सजेगा, ये सागौन तेरा..
कहाँ जा रहे हो, वहाँ कौन तेरा...

मगर चीख कर रो के देखो समंदर
चुभा कर तो देखो अंबर को नश्तर
अगर भींच कर अपनी मुट्ठी चलोगे
तो बरगद के नीचे भी फूलो फलोगे...

ये रातें घनी हैं, सभी जानते हैं
मगर आँख खोलो, वहीं पर सवेरा..
कहाँ जा रहे हो, वहाँ कौन तेरा...

15.03.2007

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