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तुझे दिल याद करता है तो नग़्मे गुनगुनाता हूँ / नीरज गोस्वामी
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तुझे दिल याद करता है तो नग़्मे गुनगुनाता हूँ
जुदाई के पलों की मुश्किलों को यूं घटाता हूं
जिसे सब ढूंढ़ते फिरते हैं मंदिर और मस्जिद में
हवाओं में उसे हरदम मैं अपने साथ पाता हूं
फसादों से न सुलझे हैं, न सुलझेगें कभी मसले
हटा तू राह के कांटे, मैं लाकर गुल बिछाता हूं
नहीं तहजीब ये सीखी कि कह दूं झूठ को भी सच
गलत जो बात लगती है गलत ही मैं बताता हूं
मुझे मालूम है मैं फूल हूं झर जाऊंगा इक दिन
मगर ये हौसला मेरा है हरदम मुस्कुराता हूं
नहीं जब छांव मिलती है कहीं भी राह में मुझको
सफर में अहमियत मैं तब शजर की जान जाता हूं
घटायें, धूप, बारिश, फूल, तितली, चांदनी 'नीरज'
तुम्हारा अक्स इनमें ही मैं अक्सर देख पाता हूँ