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तुझे देखे तो चलना भूल जाए / राज़िक़ अंसारी
Kavita Kosh से
तुझे देखे तो , चलना भूल जाए
मुसाफ़िर घर का रस्ता भूल जाए
अगर शायर तेरी आँखों में झांके
समंदर, झील , दरिया भूल जाए
सहारा है तेरी यादों का वरना
हमारा दिल धड़कना भूल जाए
करे जो क़ैस हम जैसी मशक़्क़त
तो सहरा में भटकना भूल जाए
अगर मैं खोल के रख दूं मेरा दिल
तू अपना दर्द , रोना भूल जाए