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तुझे नक़्श-ए-हस्ती मिटाया तो देखा / 'ममनून' निज़ामुद्दीन
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तुझे नक़्श-ए-हस्ती मिटाया तो देखा
जो पर्दा था हाइल उठाया तो देखा
ये सब तेरे ही हुस्न का परतव है
न देखा तूझे तेरा साया तो देखा
बुरा मानिए मत मेरे देखने से
तुम्हें हक़ ने ऐसा बनाया तो देखा
बुरा मानिए मत मेरे देखने से
तुम्हें हक़ ने ऐसा बनाया तो देखा
न हूँ क्यूँके ‘ममनून’ पीर-ए-मुग़ाँ का
ये आलम जो साग़र पिलाया तो देखा