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तुझे रौंदूँगा / असंगघोष
Kavita Kosh से
मैंने झाँका
तेरे समाज के आइने में
वहाँ मेरा अक्श
मौजूद नहीं था
तेरी कुदृष्टि की मार से
आइना खण्ड-खण्ड विखण्डित हो
यत्र-तत्र फैला हुआ
दिखा
तूने बताया
एक बड़े टुकड़े के सामने
मेरा अक्श
मैं और तू
दोनों ही खड़े थे जहाँ
मैंने जानना चाहा तुझसे
तेरा बताया मेरा अक्श
किरचों-किरचों बिखरा
कटा-फटा धुँधलाया हुआ
क्यों है?
तू मौन रहा
अब भी मौन ओढ़े है, पर
तेरी आँख व हाथ का
इशारा बता रहा है
मेरा अक्श
तेरे निष्ठुर समाज में
धुँधलाया हुआ क्यों है
ठीक तेरे पाँवों के नीचे
इस तरह
तू सदियों से
मेरा जन्म अपने पाँवों से बता
मुझे रौंदता आया
अब समझ गया हूँ
तेरी करतूत
अब तू तैयार रह
मैं रौंदूँगा
तुझे अब अपने पैरों तले।