Last modified on 10 जुलाई 2025, at 10:51

तुझे लोग गुनगुनाएँगे / वीरेन्द्र वत्स

किसी किताब में सिमटी हुई ग़ज़ल की तरह
न घर में बैठ तुझे लोग गुनगुनाएँगे
 
तू इन्क़लाब है किस्मत संवार सकती है
ये जंगबाज़ तेरी पालकी उठाएँगे
 
ये तेरी उम्र, तेरा जोश, ये तेरे तेवर
बुझे दिलों में नया ज़लज़ला जगाएँगे
 
फटी ज़मीन तो शोले उठेंगे सागर से
कहाँ तलक वो तेरा हौसला दबाएँगे
 
झुका-झुका के कमर तोड़ दी गई जिनकी
वो आज मिलके ज़माने का सिर झुकाएँगे