तुझ बेवफ़ा के संग सूँ है पारा-पारा दिल
रेज़श में तुझ जफ़ा सूँ है मिस्ल-ए-सितारा दिल
लर्जा़ है तब सूँ रा'शा-ए-सीमाब की नमत
जब सूँ तिरी पलक का किया है नज़ारा दिल
तुझ मुख के आफ़ताब की गर्मी कूँ देखकर
जल शौक़ की अगन सूँ हुआ ज्यूँ अँगारा दिल
बेशक शफ़ा-ए-ख़ातिर-ए-बीमार हो तधाँ
तुझ लब के जब तबीब सिती पावे चारा दिल
आवे अगर 'वली' के सिने के महल में तू
देखे तिरे जमाल कूँ फिर कर दुबारा दिल