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तुझ मुख पे जो इस ख़त का अंदाज़ा हुआ / वली दक्कनी

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तुझ मुख पे जो इस ख़त का अंदाज़ा हुआ ताज़ा
अब हुस्‍न के दीवाँ का शीराज़ा हुआ ताज़ा

फूलाँ ने अपस का रंग ईसार किया तुझ पर
तुझ मुख पे जब ऐ मोहन ये ग़ाज़ा हुआ ताज़ा

उस हुस्‍न के आलम में तू शुहरा-ए-आलम है
हर मुख सूँ तेरा जग में आवाज़ा हुआ ताज़ा

सीने सूँ लगाने की हुई दिल कूँ उमंग ताज़ी
आलस सिती जब तुझ में ख़मियाज़ा हुआ ताज़ा

जो शे'र लिबासी थे ज्‍यूँ फूल हुए बासी
जब शे'र 'वली' तेरा यो ताज़ा हुआ ताज़ा