भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुझ में सैलाबे-बला थोड़ी जवानी कम है / मुनव्वर राना

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


तुझ में सैलाबे-बला थोड़ी जवानी कम है
ऐसा लगता है मेरी आँखों में पानी कम है

कुछ तो हम रोने के आदाब<ref>तौर तरीके</ref> से नावाक़िफ़<ref>अपरिचित</ref>हैं
और कुछ चोट भी शायद ये पुरानी कम है

इस सफ़र के लिए कुछ जादे-सफ़र<ref>सफ़र के लिए रसद</ref>और मिले
जब बिछड़ना है तो फिर एक निशानी कम है

शहर का शहर बहा जाता है तिनके की तरह
तुम तो कहते थे कि अश्कों में रवानी कम है

कैसा सैलाब था आँखें भी नहीं बह पाईं
ग़म के आगे ये मेरी मर्सिया-ख़्वानी<ref>शोक गाथा</ref> कम है

मुन्तज़िर<ref>प्रतीक्षारत</ref>होंगी यहाँ पर भी किसी की आँखें
ये गुज़ारिश है मेरी याद-दहानी<ref>स्मरण-शक्ति</ref> कम है

शब्दार्थ
<references/>