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तुमको इस दुनिया ने अब तक है दिया कुछ भी नहीं / अमरेन्द्र

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तुमको इस दुनिया ने अब तक है दिया कुछ भी नहीं
और तुम निकले भी ऐसे कि लिया कुछ भी नहीं

जिन्दगी माँगी है तो कैसे नहीं रोओगे
जुर्म ये इतना बड़ा है कि सजा कुछ भी नहीं

जिसको खुद पे न भरोसा हो ना औरों पर ही
ऐसे लोग दुनिया में जी के भी जिया कुछ भी नहीं

ऐसी जगहों में चला जाता हूँ अक्सर ही मैं
बारी आती मेरी देखूँ, बचा कुछ भी नहीं

लोग आए थे बहुत गुस्से में भाषण भी हुये, मंच जमे
फिर गए घर को सभी और हुआ कुछ भी नहीं

तू ही बढ़ कर तो दिखा दुनिया को जहांआरा
अगर तू कहता है दुनिया में खुदा कुछ भी नहीं

एक उम्मीद मेरी मुझको रवां रखती है
मैं वहाँ जाता जहाँ उसका पता कुछ भी नहीं

जख्म यारों के सहे यारों पे मरना सीखा
और अमरेन्द्र ने दुनिया में किया कुछ भी नहीं।