भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तुमको इस दुनिया ने अब तक है दिया कुछ भी नहीं / अमरेन्द्र
Kavita Kosh से
तुमको इस दुनिया ने अब तक है दिया कुछ भी नहीं
और तुम निकले भी ऐसे कि लिया कुछ भी नहीं
जिन्दगी माँगी है तो कैसे नहीं रोओगे
जुर्म ये इतना बड़ा है कि सजा कुछ भी नहीं
जिसको खुद पे न भरोसा हो ना औरों पर ही
ऐसे लोग दुनिया में जी के भी जिया कुछ भी नहीं
ऐसी जगहों में चला जाता हूँ अक्सर ही मैं
बारी आती मेरी देखूँ, बचा कुछ भी नहीं
लोग आए थे बहुत गुस्से में भाषण भी हुये, मंच जमे
फिर गए घर को सभी और हुआ कुछ भी नहीं
तू ही बढ़ कर तो दिखा दुनिया को जहांआरा
अगर तू कहता है दुनिया में खुदा कुछ भी नहीं
एक उम्मीद मेरी मुझको रवां रखती है
मैं वहाँ जाता जहाँ उसका पता कुछ भी नहीं
जख्म यारों के सहे यारों पे मरना सीखा
और अमरेन्द्र ने दुनिया में किया कुछ भी नहीं।